thoda dhundhlapan tha nazar mein,
dar tha man mein, so baitha tha van mein,
tabhi, suni aawaaz kisi ki,
kaha usne, utho aur badho!
kam-se-kam koshish to karo,
socha chalta hun, chalne mein kya?
chalta raha meelon, anjaane raaston per,
tabhi achaanak thaher gaye kadam,
kuch ajab-sa dekh kar!
dekha kuch bhatke, bhuule,
logon ko baithe hue-
suukh chuke ujde pedon per,
pucha kaaran unse-
unmein se ek bola,
thode utsaah mein bharker,
hum baithe hain ped per-
kyunki manzil dikhti saaf yahan per,
chod diya chalna sun kar,
baith gaya main bhi thak-kar,
dekha abhi bhi tha dhundhlapan nazar mein....
Himanshu
___________________________________________बैठा देख रहा था मंज़िल की तरफ़ ,
थोड़ा धुंधलापन था नज़र में ,
डर था मन में, सो बैठा था वन में।
तभी, सुनी आवाज़ किसी की,
कहा उसने, उठो और बढो !
कम-से-कम कोशिश तो करो।
सोचा चलता हूँ, चलने में क्या?
चलता रहा मीलों अनजाने रास्तों पर,
तभी अचानक ठहर गए कदम-
कुछ अजब-सा देख कर !
देखा कुछ भटके, भूले,
लोगों को बैठे हुए-
सूख चुके उजडे पेड़ों पर,
पूछा कारण उनसे-
उनमें से एक बोला,
थोड़े उत्साह में भरकर,
हम बैठे हैं पेड़ पर-
क्यूंकि मंज़िल दिखती साफ़ यहाँ पर,
छोड़ दिया चलना सुन कर,
बैठ गया मैं भी थक-कर,
देखा अभी भी था धुंधलापन नज़र में....
हिमांशु
No comments:
Post a Comment